देवी कात्यायनी, महर्षि कात्यायन की पुत्री हैं। महर्षि कात्यायन ने कठोर तपस्या कर पुत्री के जन्म के लिए आदि शक्ति से प्रार्थना की थी। आदि शक्ति देवी दुर्गा ने प्रसन्न हो कर कात्यायन के घर जन्म लेने का आशीर्वाद दिया था। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण ही देवी का नाम कात्यायनी पड़ा।
माँ कात्यायनी ने असुर महिषासुर का संहार किया था और यही कारण है कि उनका एक और नाम पड़ा महिषासुर मर्दिनी। देवी कात्यायनी भक्तों के कार्य बहुत ही सरलता और सुगमता से करने वाली मानी गई हैं। मां की आराधाना करने वाले को भय और रोगों से मुक्ति मिलती है। मां कात्यायनी का वाहन सिंह है।
मां कात्यायनी का विशेष मंत्र: चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना| कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि||
देवी कात्यायनी का ध्यान:
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥ स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्। वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥ पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्। मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥ प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्। कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
देवी कात्यायनी का स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां। स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥ पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां। सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥ परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा। परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
मां कात्यायनी का कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी। ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥ कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
मां कात्यायनी की आरती
जय कात्यायनि माँ, मैया जय कात्यायनि माँ । उपमा रहित भवानी, दूँ किसकी उपमा ॥ मैया जय कात्यायनि....
गिरजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हाँ । वर-फल जन्म रम्भ गृह, महिषासुर लीन्हाँ ॥ मैया जय कात्यायनि....
कर शशांक-शेखर तप, महिषासुर भारी । शासन कियो सुरन पर, बन अत्याचारी ॥ मैया जय कात्यायनि....
त्रिनयन ब्रह्म शचीपति, पहुँचे, अच्युत गृह । महिषासुर बध हेतू, सुर कीन्हौं आग्रह ॥ मैया जय कात्यायनि....
सुन पुकार देवन मुख, तेज हुआ मुखरित । जन्म लियो कात्यायनि, सुर-नर-मुनि के हित ॥ मैया जय कात्यायनि....
अश्विन कृष्ण-चौथ पर, प्रकटी भवभामिनि । पूजे ऋषि कात्यायन, नाम काऽऽत्यायिनि ॥ मैया जय कात्यायनि....
अश्विन शुक्ल-दशी को, महिषासुर मारा । नाम पड़ा रणचण्डी, मरणलोक न्यारा ॥ मैया जय कात्यायनि....
दूजे कल्प संहारा, रूप भद्रकाली । तीजे कल्प में दुर्गा, मारा बलशाली ॥ मैया जय कात्यायनि....
दीन्हौं पद पार्षद निज, जगतजननि माया । देवी सँग महिषासुर, रूप बहुत भाया ॥ मैया जय कात्यायनि....
उमा रमा ब्रह्माणी, सीता श्रीराधा । तुम सुर-मुनि मन-मोहनि, हरिये भव-बाधा ॥ मैया जय कात्यायनि....
जयति मङ्गला काली, आद्या भवमोचनि । सत्यानन्दस्वरूपणि, महिषासुर-मर्दनि ॥ मैया जय कात्यायनि....
जय-जय अग्निज्वाला, साध्वी भवप्रीता । करो हरण दुःख मेरे, भव्या सुपुनीता॥ मैया जय कात्यायनि....
अघहारिणि भवतारिणि, चरण-शरण दीजै । हृदय-निवासिनि दुर्गा, कृपा-दृष्टि कीजै ॥ मैया जय कात्यायनि....
ब्रह्मा अक्षर शिवजी, तुमको नित ध्यावै । करत 'अशोक' नीराजन, वाञ्छितफल पावै॥ मैया जय कात्यायनि....