नई दिल्ली: हिंदू धर्म में पूजन,कीर्तन,भजन के अलावा धूपदान, दीपदान की भी परंपरा रही है है जो सदियों पुरानी है। हम जब भी ईश्वर की अराधना करते हैं तो उनके सम्मान में पूजा के निमित्त अगरबत्ती,धूप आदि जलाते है। इसी क्रम में हम देवी-देवताओं को भोग भी लगाते हैं। स्तुति करने के दौरान घंटी बजाना और धूपबत्ती दिखाना साथ ही शंख बजाना पूजा पाठ की प्रक्रियाओं में से एक है।
जो भी लोग पूजा पाठ करते हैं वो भगवान या फिर अपने अराध्य की भक्ति, अराधना और स्तुति करने से पहले या बाद में धूप, दीप या अगरबत्ती जलाते है। कई बार कुछ लोग जल्दबाजी में इस दौरान माचिस की तीली को फूंक मारकर बुझा देते हैं। शास्त्रों के मुताबिक ऐसा बिल्कुल गलत है। इसलिए ऐसा करने से बचना चाहिए । आइए जानते हैं कि आखिर क्यों ऐसा नहीं करने की सलाह दी जाती है।
अग्नि को शास्त्रों में देवता का दर्जा
प्रकृति के पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) की बात करें तो अग्नि उनमें से एक है। हिंदू धर्म में इन सभी यानी प्रकृति के इन तत्वों को देवता का स्थान दिया गया है। जल को वरूण देव और अग्नि को अग्नि देव के रुप में सम्मान दिया गया है। यानी देखा जाए तो पृथ्वी के पांचों तत्वों की शास्त्रों में सम्मान दिया गया है और उनकी महिमा गाई गई है। तभी से प्रकृति के इन तत्वों को देवता मानकर संरक्षित करने की परंपरा चली आ रही है।
अग्नि पृथ्वी के पांच तत्वों में से एक
दरअसल अग्नि प्रकृति के पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) में से एक है। हिंदू धर्म में इन सभी को देवता भी माना गया है। जल को वरूण देव और अग्नि को अग्नि देव के रूप में उनका यथोचित सम्मान किए जाने की भी परंपरा है। लिहाजा हम जिसे देव मानकर उसकी अराधना करते हैं उसका अपमान भला कैसे कर सकते है? इसलिए पूजा के दौरान जब भी हम धूपबत्ती जलाते हैं तो उसे बुझाने के लिए ऐसा करने से मना किया जाता है।
फूंक मारकर बुझाने से जुड़े है कई तर्क
दूसरी बात यह भी सामने आती है कि जब आप माचिस की तीली ,धूपबत्ती को फूंककर बुझाने की कोशिश करते हैं तो हो सकता है कि आग की चिंगारी या फिर उसकी राख आपकी आंखों में पड़ सकती है जिससे आपकी आंखों को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए ऐसा करने से मना किया जाता है। क्योंकि अगर चिंगारी या राख उड़ी तो फिर आपको उससे नुकसान हो सकता है। इससे जुड़ा एक आध्यात्मिक तर्क यह भी सामने आता है कि जब हम यज्ञ करते हैं तो अग्नि देव का आवाहन किया जाता है। उसी प्रकार से जब हम माचिस की तीली जलाते हैं तो वह भी एक तरह से अग्नि का आवाहन ही है। इसलिए आग बुझाने की कोशिश एक तरह से अग्नि देव का अपमान माना जाता है।