न शादी होती है और न खेती! पीढ़ियां गुजर गईं लेकिन खुसरा गांव आज भी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों पर है निर्भर

Khusra Village: भारत के मध्य प्रदेश के कटनी जिले में एक गांव है खुसरा! सरकारी वेबसाइट पर खुसरा गांव के बारे में कई अच्छी-अच्छी बातें लिखी हैं, जैसे- खुसरा की खूबसूरत वादियां और प्राकृतिक कुंड लोगों का खास आकर्षण है, जंगल है, मंदिर है, लेकिन सरकारी पहचान में उस समस्या को बड़ी आसानी से कवर कर दिया गया है, जिससे खुसरा गांव के लोग पीढ़ियों से झेल रहे हैं। खुसरा गांव में पानी की समस्या सालों से बनी है। खुसरा गांव के लोग आज भी चट्टानों से रिसने वाली पानी पर निर्भर हैं।

खुसरा की सरकारी पहचान
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खुसरा की सरकारी पहचान

मध्य प्रदेश सरकार के कटनी जिले की वेबसाइट पर खुसरा की पहचान काफी मनमोहक है। लिखा है- रीठी तहसील मुख्यालय से लगभग 20 किमी. दूरी पर जंगलों के बीच स्थित खुसरा गांव चारों ओर से वन से घिरा है। गांव के नजदीक महादेव भगवान का स्थान पर जहां पर जंगल की गहराई में प्राकृतिक शिवलिंग स्थापित है। महादेव से जंगल का खूबसूरत नजारा हर किसी को आकर्षित करता है। जिले का पिकनिक स्पॉट होने के साथ ही खुसरा क्षेत्र में औषधीय भंडार भी हैं।

खुसरा में चट्टानों से रिसते पानी पर निर्भर लोग
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खुसरा में चट्टानों से रिसते पानी पर निर्भर लोग

कटनी जिले से महज 65 किलोमीटर दूर, बहोरीबंद ब्लॉक के रीठी जनपद में बसा खुसरा गांव, जहां सदियों से पानी की तलाश में जिंदगी थम सी गई है। गांव के बीच एक खाई है, जहां चट्टानों से टपकती बूंदों को सहेज कर ग्रामीण अपनी प्यास बुझाते हैं।

खुसरा में पानी के घंटों का इंतजार
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खुसरा में पानी के घंटों का इंतजार

हर सुबह गांव की महिलाएं और बच्चे जान हथेली पर लेकर उस खतरनाक खाई तक जाते हैं। सिर पर भारी बर्तन, पैरों में कांटे और आंखों में केवल एक ही उम्मीद- कुछ बूंदें पानी की। एक बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि पानी की किल्लत है। खेती नहीं होती, बच्चे स्कूल नहीं जा पाते । जैसे-तैसे जीते हैं। एक-दो घंटे लाइन में लगो, तब कहीं पानी मिलता है।

खुसरा में न शादी और न खेती
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खुसरा में न शादी और न खेती

पानी की यह त्रासदी अब खुसरा गांव की पहचान बन चुकी है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि बचपन से ही उन्होंने अपनों को खाई से पानी लाते देखा है। युवाओं के सपने इस प्यास में दम तोड़ चुके हैं। कई नौजवान अब तक अविवाहित हैं, क्योंकि कोई पिता अपनी बेटी को ऐसे गांव में नहीं देना चाहता, जहां पानी भी नसीब नहीं है। बुजुर्ग ग्रामीण गणेश सिंह ने कहा, "नेता लोग चुनाव के टाइम आते हैं, वादा करते हैं, लेकिन काम कोई नहीं करता। पानी के बिना कुछ नहीं है, न खेती, न शादी। लड़की वाले कहते हैं कि पानी नहीं है तो बेटी नहीं देंगे।"

पीढ़ियां गुजर गईं लेकिन प्यास नहीं बुझी
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पीढ़ियां गुजर गईं लेकिन प्यास नहीं बुझी

बुजुर्ग महिला बताती हैं कि जब मैं पचास साल पहले खुसरा गांव में ब्याह कर आई थी, तब भी यही हाल था और आज भी कुछ नहीं बदला। बच्चे बड़े हो गए, लेकिन ये पानी की परेशानी वैसी की वैसी है।

 हर सांस की कीमत चुकानी पड़ती है
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हर सांस की कीमत चुकानी पड़ती है

पानी के बिना जीवन की कल्पना भी मुश्किल है, लेकिन सोचिए, अगर हर दिन की शुरुआत ही एक-एक बूंद पानी के लिए संघर्ष से हो, तो जिंदगी कैसी होगी? चट्टानों से टपकती हर बूंद, हर सांस की कीमत चुकानी पड़ती है। यहां के लोग पीढ़ियों से खाई में उतर कर, मौत से जंग लड़ते हुए पानी इकट्ठा कर रहे हैं और हालात इतने खराब हैं कि लोग यहां अपनी बेटियों का ब्याह भी करने से कतराते हैं।

खुसरा में गर्मी में हाल बेहाल
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खुसरा में गर्मी में हाल बेहाल

खुसरा गांव में गर्मी के दिनों में हालात और भी बदतर हो जाते हैं। पानी की तलाश में ग्रामीणों को जंगल से होकर गुजरना पड़ता है, जहां जंगली जानवर जैसे बाघ और चीते भी पानी पीने आते हैं। कई बार महिलाएं जानवरों को देख पहाड़ पर चढ़कर जान बचाती हैं और फिर वही संघर्ष शुरू होता है। गांव की युवती आरती बताती हैं- "सुबह चार बजे से पानी लेने के लिए लाइन में खड़ी हूं, अब जाकर नंबर आया है। दस साल से पानी भर रही हूं, लेकिन कुछ नहीं बदला। इसी वजह से पढ़ाई भी छूट गई।"

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