कौन होते हैं DGMO, जिनकी बातचीत से रुक गया एक भारत पाकिस्तान का भीषण युद्ध

भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे सैन्य हमलों को दोनों देशों के डीजीएमओ की बातचीत के बाद रोक दिया गया, दोनों देश सीजफायर के लिए सहमत हो गए, गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान दोनों लगभग बड़े युद्ध के कगार पर पहुंच गए थे। नई दिल्ली और इस्लामाबाद ने सीमा पार सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति जताई है, इसकी घोषणा सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर की थी। Tweet

कौन होते हैं DGMO जिनकी बातचीत से रुक गया एक भारत पाकिस्तान का युद्ध
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कौन होते हैं DGMO, जिनकी बातचीत से रुक गया एक भारत पाकिस्तान का युद्ध

भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही लड़ाई बड़े युद्ध का रूप लेने को तैयार थी कि भारत-पाकिस्तान के बीच शनिवार 10 मई की शाम करीब 5 बजे Ceasefire का एलान हो गया। दोनों देशों के DGMO (Director General Military Operations) के बीच बातचीत हुई, जिसके बाद सीमा पार सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति जताई गई।ये भी पढ़ें - Ceasefire क्‍या होता है, इसका हिंदी नाम क्या है, कब किया जाता है लागू जानें सब कुछ

कौन हैं भारत के DGMO
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कौन हैं भारत के DGMO

DGMO सेना का एक अहम और बहुत बड़ा पद है। भारत के DGMO का नाम लेफ्टिनेंट राजीव घई (Lieutenant General Rajiv Ghai) है, जो कि अक्‍टूबर 2024 से इस पद पर देश की सेवा कर रहे हैं। इस महत्वपूर्ण पदभार को संभालने से पहले, वह चिनार कॉर्प्स के जनरल ऑफिसर कमांडिंग GOC के पद पर रह चुके हैं।

कौन होते हैं DGMO
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कौन होते हैं DGMO

DGMO भारतीय सेना के एक सीनियर लेफ्टिनेंट जनरल 3-स्टार रैंक का अधिकारी होता है। सारे सैन्य अभियान इन्हीं की निगरानी में होते हैं। युद्ध के दौरान सैन्य अभियान से जुड़े हर छोटे से बड़ा फैसला DGMO लेता है। यही नहीं, युद्ध के लिए या युद्ध के दौरान रणनीति भी डीजीएमओ बनाता है।

DGMO किसे रिपोर्ट करता है
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DGMO किसे रिपोर्ट करता है?

DGMO सीधे आर्मी चीफ को रिपोर्ट करता है। चूंकि DGMO के पास युद्ध की स्थिति का सारा डेट होता है, इसलिए आर्मी चीफ सीधे इन्हीं से जायजा लेते हैं। इसके अलावा खुफिया एजेंसियों के साथ भी डीजीएमओ समन्वयब बनाए रखता है।

क्यों खास है DGMO का पद
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क्यों खास है DGMO का पद?

DGMO केवल एक पद नहीं है, बल्कि ये देश की वो ता​हत हैं, जिससे देश की सुरक्षा, युद्ध नीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध तक प्रभावित होते हैं। कई बार दो देशों के DGMO की बातचीत से युद्ध को टाला जा सकता है।

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