आखिर कहां से होता है ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम? जानें कितने प्रांतों में बहती है इसकी धारा
भारत, तिब्बत तथा बांग्लादेश में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का रहस्य और इसका स्रोत हमेशा से ही लोगों की जिज्ञासा का केंद्र रहा है। यह विशाल नदी कहां से निकलती है और किन-किन प्रदेशों से होकर बहती है? यह जानना बेहद दिलचस्प हो सकता है। ऐसे में आइए जानते हैं ब्रह्मपुत्र नदी के उद्गम और इसकी यात्रा के बारे में यहां।
भारत की प्रमुख नदियों में से एक
भारत की प्रमुख नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र नदी अपनी विशालता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती है। यह नदी अपने किनारों पर बसे अद्भुत पारिस्थितिक तंत्र और सांस्कृतिक विविधता के लिए मशहूर है। इसके जल और तट हमेशा से लोगों के जीवन और कृषि के लिए अति महत्वपूर्ण रहे हैं। (फोटो: iStock)
कहां से होता है ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम?
ब्रह्मपुत्र का उद्गम हिमालय के उत्तर में तिब्बत के पुरंग जिले के पास, मानसरोवर झील के निकट होता है, जहां इसे यरलुङ त्सङ्पो कहा जाता है। तिब्बत की धरती पर बहने के बाद यह नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। इसकी लंबाई 2700 किलोमीटर है। (फोटो: iStock)
कितने प्रांतों में बहती है ब्रह्मपुत्र नदी?
ब्रह्मपुत्र नदी भारत के तीन राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय के पास बहती है, लेकिन इसका मुख्य प्रवाह अरुणाचल प्रदेश और असम में ही देखा जाता है। इसके बाद यह बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जहां इसे जमुना कहा जाता है और अंततः बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। (फोटो: iStock)
बौद्ध मान्यताओं में ब्रह्मपुत्र नदी
यारलुंग त्सांगपो या ब्रह्मपुत्र, एकमात्र ऐसी नदी है जिसका शाब्दिक अर्थ 'ब्रह्मा का पुत्र' है। इसे हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में पवित्र माना जाता है। बौद्ध मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन समय में चांग थांग पठार एक विशाल झील था। एक दयालु बोधिसत्व ने यह सोचकर कि पानी नीचे के लोगों तक पहुंचना चाहिए, हिमालय पर्वत के माध्यम से यारलुंग त्सांगपो के प्रवाह का मार्ग बनाया, जिससे यह पानी मैदानी इलाकों तक पहुँचकर उन्हें समृद्ध कर सके। (फोटो: iStock)
ब्रह्मा का पुत्र
हिंदू धर्म में ब्रह्मपुत्र नदी को ब्रह्मा और अमोघ ऋषि का पुत्र माना जाता है। कहा जाता है कि अमोघ ऋषि, ऋषि शांतनु की सुंदर पत्नी थीं। ब्रह्मा उनके सौंदर्य से मोहित होकर उनके पास आए, और उनका एक पुत्र हुआ, जो बाद में पानी की तरह बह गया। ऋषि शांतनु ने इस 'ब्रह्मा के पुत्र' को कैलाश, गंधमादन, जरुधि और समवर्ती के चार महान पर्वतों के बीच स्थित किया, जहाँ यह एक विशाल झील, ब्रह्म कुंड, के रूप में विकसित हुआ। (फोटो: iStock)
नदी के लाल होने का वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक दृष्टि से ब्रह्मपुत्र नदी के लाल होने का कारण इस क्षेत्र की मिट्टी में उच्च मात्रा में लौह तत्व होना और लाल एवं पीली मिट्टी की अधिक तलछट है। ये तत्व और तलछट नदी के पानी को लाल रंग प्रदान करते हैं। (फोटो: iStock)
ब्रह्मपुत्र नदी की धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मपुत्र नदी का पानी हर साल तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। इसका संबंध असम के गुवाहटी में स्थित प्रसिद्ध कामाख्या देवी मंदिर से है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, माता सती का योनि भाग इसी स्थान पर गिरा था, जिसके कारण देवी का साल में एक बार मासिक धर्म होता है। ऐसा माना जाता है कि इसी समय, यानी आषाढ़ माह (जून में), देवी कामाख्या रजस्वला होता है और उसके बहते रक्त के कारण ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल हो जाता है। इस दौरान मंदिर तीन दिनों के लिए बंद रहता है। (फोटो: iStock)
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