नई दिल्ली : हिंदी पट्टी के राज्यों में दस्तक देने की कोशिश कर रही ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (AIMIM) को झारखंड चुनावों में झटका लगा है। असदुद्दीन ओवैसी ने इस चुनाव में राज्य की करीब 14 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन किसी भी जगह पर उनकी पार्टी अपनी छाप नहीं छोड़ पाई है। हालांकि, गत अक्टूबर में बिहार के किशनगंज सीट पर हुए उपचुनाव को जीतकर एआईएमआईएम ने सभी को चौंका दिया था। हाल के वर्षों में ओवैसी ने हैदराबाद, महाराष्ट्र से आगे बढ़कर हिंदी पट्टी के राज्यों यूपी, बिहार और झारखंड में अपना दायरा बढ़ाने की कोशिश की है।
बिहार के उपचुनाव में उनकी जीत और झारखंड की रैलियों में युवाओं की उमड़ने वाली भीड़ को देखकर लगा कि एआईएमआईएम इस चुनाव में अपना खाता खोल सकती है। दरअसल, झारखंड की दर्जन भर से ज्यादा सीटों के नतीजों को मुस्लिम वोट बैंक प्रभावित करता है। खुद ओवैसी ने कई रैलियां की और अपनी सभाओं में कांग्रेस एवं भाजपा पर निशाना साधा लेकिन 23 दिसंबर को चुनाव रुझानों ने एआईएमआईएम को निराश किया।
सोमवार शाम तक एआईएमआईएम को करीब 1.08 प्रतिशत वोट मिले। इससे जाहिर है कि ओवैसी की सभाओं में जुटने वाली भीड़ ने उनकी पार्टी पर भरोसा नहीं जताया। लोगों ने कहीं न कहीं एआईएमआईएम को एक 'वोट कटवा' पार्टी के रूप में देखा।
बिहार में उपचुनाव से पहले एआईएमआईएम नेता आदिल हसन ने कहा, 'अभी हमारा ध्यान अपने सांगठनिक ढांचे को मजबूत बनाने पर है। बिहार में हमारे पास अभी 1.5 लाख कार्यकर्ता हैं और यह संख्या उपचुनाव के बाद 5 लाख हो सकती है। सीमांचल और अन्य क्षेत्रों के लोग एआईएमआईएम में भरोसा जता रहे हैं। बिहार का अल्पसंख्यक दशकों से अपने अधिकारों से वंचित है।'
महाराष्ट्र में गत अक्टूबर में आए विधानसभा चुनाव नतीजे भी ओवैसी के लिए ज्यादा अच्छे नहीं रहे। एआईएमआईएम ने इस चुनाव में 44 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन पार्टी केवल दो नई सीटें जीतने में सफल रही उसे बाइकुला एवं औरंगाबाद मध्य सीट पर हार का सामना करना पड़ा। महाराष्ट्र में 2014 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 24 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
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