नई दिल्ली। महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों राज्यों में कमल खिला तो जरूर लेकिन बीजेपी को जिस शानदार प्रदर्शन की उम्मीद थी वो नतीजे नहीं मिले। महाराष्ट्र में 200 के पार और हरियाणा में 75 पार का नारा हकीकत में तब्दील नहीं हो पाया। यहां हम जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। क्या बीजेपी के कोर वोटर्स भी घरों से बाहर नहीं निकले या मामला कुछ और था। सबसे पहले बात करेंगे हरियाणा की और गांवों और शहरों का हाल बताएंगे।
2014 में ग्रामीण इलाकों की कुल 25 सीटों पर बीजेपी का कब्जा था जबकि 2019 में ये आंकड़ा 21 पर सिमट गया। अगर शहरी इलाकों की बात करें तो 2014 में बीजेपी के खाते में 22 सीटें गई थीं। लेकिन 2019 में ये आंकड़ा 18 पर सिमट गया।
इसके साथ ही अगर आरक्षित सीटों(15 फीसद से ज्यादा आबादी) की बात करें तो 2014 में बीजेपी 14 सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही जबकि 2019 में ये आंकड़ा घटकर 11 हो गया। इसके साथ ही 15 फीसद से कम आबादी वाली सीटों पर 2014 में 9 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2019 में सिर्फ पांच सीटों पर जीत मिली।
अब बात महाराष्ट्र की करते हैं यहां पर शहरी इलाकों में 2014 में बीजेपी और शिवसेना के खाते में 58 और 27 सीटें थीं। लेकिन 2019 में यह आंकड़ा 51 और 23 का हो गया। अगर गांवों की बात करें तो 2014 में बीजेपी और शिवसेना 64 और 36 सीटें मिली थीं जबकि 2019 में ये आंकड़ा 54 और 32 का हो गया।
अगर 15 फीसद से ज्यादा एससी आबादी वाली सीटों की बात करें 2014 में बीजेपी और शिवसेना के खाते में 47 और 13 सीटें मिलीं थी। लेकिन 2019 में ये आंकड़ा घटकर 36 और 12 सीटों का हो गया। अगर 15 फीसद से कम आबादी वाली सीटों की बात करें तो 2014 में ये आंकड़ा बीजेपी और शिवसेना के लिए 25 और 12 था जबकि 2019 में इसमें कमी आई जो 14 और 8 सीटों की हो सकती है।
अगर इन्हे प्रतिशत के तौर पर देखें तो गांवों में एनडीए की सीटों में 16 फीसद की कमी आई जबकि शहरों में भी 15 फीसद का नुकसान हुआ।
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