नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक नाबालिग मुस्लिम लड़की ने याचिका दायर कर मांग की है कि उसकी शादी को मान्य करार दिया जाए। लड़की ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि उसने मुस्लिम कानून के हिसाब से निकाह किया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, लड़की ने याचिका में कहा है कि उसने प्यूबर्टी (रजस्वला) की उम्र को पार कर लिया है और वह अपनी जिंदगी जीने का आजाद है।
सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस एनवी रमना, इंदिरा बनर्जी और अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने लड़की की याचिका पर सुनवाई की अनुमति देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर मामले में दो हफ्ते के अंदर जवाब देने के कहा है। याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय से कहा है कि लड़की ने मुस्लिम कानून के हिसाब से निकाह किया है और यह पूरी तरह से कानूनी है।
वकील ने कहा कि लड़की 16 साल की है और लड़का 24 साल का है। दोनों ने इस्लाम धर्म के मुताबिक निकाह किया है और दोनों का निकाहनामा एक- दूसरे के मर्जी से लिखा गया है। बता दें कि लड़की की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निकाह को शून्य करार देते हुए उसे शेल्टर होम में भेजने का आदेश दिया था। इससे पहले अयोध्या की एक निचली अदालत ने लड़की को नाबालिग मानते हुए निकाह को अमान्य करार दिया था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि लड़की के पिता उसे अपने पति के साथ रहने में दखल दे रहे हैं, बल्कि लड़की ने प्यूबर्टी की आयु पार करने के बाद वैध रूप से निकाह किया था। बता दें कि लड़की ने जून में मुस्लिम कानून के अनुसार एक युवक से निकाह कर लिया था जिससे वह प्रेम करती थी।
वहीं, लडकी ने अपनी याचिका में कहा है कि वह अपनी जिदंगी का फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है। इससे पहले लड़की के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा था कि एक युवक ने उनकी बेटी का अपहरण कर लिया है। लेकिन बाद में जब लड़की का पता चला, तो उसने मजिस्ट्रेट के सामने बयान में कहा कि उसका कोई अपहरण नहीं हुआ था और उसने अपने इच्छा के अनुसार निकाह किया है।
गौरतलब है कि कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने 2018 शाफीन जहां केस का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश में कहा था कि अपने पसंद से शादी करने का फैसला संविधान सबको देता है। बता दें कि भारत में, विवाह की कानूनी उम्र लड़कियों के लिए 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष है, दोनों विशेष विवाह अधिनियम 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत निर्धारित की गई हैं।
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