शरद पवार तैयार नहीं, महाराष्ट्र में शिवसेना कैसे बनाएगी सरकार!

देश
आलोक राव
Updated Nov 06, 2019 | 13:28 IST

Sanjay Raut on Maharashtra crisis : साल 1989 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपने हिंदुत्व विचारधारा के आधार पर शिवसेना के साथ चुनाव-पूर्व गठबंधन किया। इस गठबंधन को भाजपा नेता प्रमोद महाजन ने आकार दिया।

Maharashtra will head for president rule if BJP Shivsena did not form government
महाराष्ट्र में सरकार बनाने पर भाजपा-शिवसेना में बना है गतिरोध।  |  तस्वीर साभार: PTI
मुख्य बातें
  • महाराष्ट्र में सरकार बनाने पर भाजपा-शिवसेना में जारी है गतिरोध
  • भाजपा और शिवसेना के बीच रिश्तों में आते रहे हैं उतार और चढ़ाव
  • महाराष्ट्र में आठ नवंबर तक होना है नई सरकार का गठन

महाराष्ट्र में सरकार गठन पर भाजपा और शिवसेना के बीच बना गतिरोध दूर नहीं हो पा रहा है। मुख्यमंत्री पद की अपनी मांग से शिवसेना पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। वह '50-50 फॉर्मूले' पर अड़ी है। भाजपा की तरफ से अंदरखाने गतिरोध तोड़ने के प्रयास यदि जारी भी हैं तो उसका सकारात्मक परिणाम या गतिरोध टूटने के संकेत अभी सामने नहीं आए हैं। शिवसेना नेता संजय राउत ने फिर कहा है कि भाजपा के नए प्रस्ताव पर कोई बातचीत नहीं हुई है। शिवसेना की मांग पर भाजपा यही कहती आई है कि महाराष्ट्र में सरकार भाजपा-शिवसेना गठबंधन की बनेगी। उसने खुले तौर शिवसेना की मांग खारिज नहीं की है। उसे उम्मीद है कि पहले की तरह इस बार भी शिवसेना के साथ किसी फॉर्मूले पर सहमति बन जाएगी। इस बीच, राकांपा सुप्रीमो शरद पवार ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी सरकार का हिस्सा नहीं होगी क्योंकि राकांपा को जनादेश विपक्ष में बैठने के लिए मिला है। ऐसे में शिवसेना के पास भाजपा के साथ जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह जाता है।  

महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव नतीजों को आए 14 दिन बीत चुके हैं और राज्य में नई सरकार का गठन 8 नवंबर से पहले हो जाना है। ऐसे में सरकार बनाने में अब तीन दिन शेष बचे हैं। इन तीन दिनों में दोनों पार्टियां यदि सरकार बनाने के लिए किसी नतीजे पर नहीं पहुंचतीं तो राज्य में राष्ट्रपति शासन का रास्ता प्रशस्त हो सकता है। ऐसे में भाजपा और शिवसेना दोनों नहीं चाहेंगी कि सरकार बनाने के लिए उन्हें जो जनादेश मिला है, उसका अपमान हो। भाजपा और शिवसेना के रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं लेकिन उन्होंने हमेशा बीच का कोई रास्ता निकाल लिया है। हालांकि, इस बार यह गतिरोध कुछ लंबा खिंच रहा है। आइए एक नजर डालते हैं भाजपा और शिवसेना के उतार-चढ़ाव भरे रिश्ते पर। 

1989 में एक साथ आए भाजपा-शिवसेना
साल 1989 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपने हिंदुत्व विचारधारा के आधार पर शिवसेना के साथ चुनाव-पूर्व गठबंधन किया। इस गठबंधन को भाजपा के दिवगंत नेता प्रमोद महाजन ने आकार दिया। महाजन के शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के साथ अच्छे संबंध थे। उस समय महाराष्ट्र में भाजपा की राजनीतिक पकड़ नहीं थी। उस समय इस राज्य में कांग्रेस सबसे मजबूत पार्टी थी।  महाराष्ट्र में शिवसेना भी एक मजबूत क्षेत्रीय राजनीतिक दल में उभरना चाहती थी। ऐसे में भाजपा की हिंदुत्व विचारधारा के सहारे उसने अपने जनाधार का विस्तार किया। 

महाराष्ट्र में एक-दूसरे की जरूरत बनीं दोनों पार्टियां
महाराष्ट्र में धीरे-धीरे भाजपा और शिवसेना दोनों एक दूसरे की जरूरत बन गए। राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते 1989 में भाजपा ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ी और इसके बाद विधानसभा चुनावों में भगवा पार्टी ने सीटों की ज्यादा संख्या शिवसेना के लिए छोड़ दी। विधानसभा चुनाव में शिवसेना 183 सीटों पर चुनाव लड़ी और उसे 52 सीटों पर जीत मिली जबकि भाजपा ने 104 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसके खाते में 42 सीटें आईं। शिवसेना की तरफ से मनोहर जोशी विपक्ष के नेता बने लेकिन कुछ समय बाद शिवसेना से छगन भुजबल ने उन्हें चुनौती दी। बाद में 1991 में भुजबल कांग्रेस में शामिल हो गए और इसके बाद विपक्ष के नेता का पद भाजपा के हिस्से में आ गए।

बाबरी विध्वंस और बॉम्बे बम विस्फोटों के बाद तेजी से उभरे दोनों दल
दिसंबर 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस और मार्च 1993 के बॉम्बे बम विस्फोटों के बाद भाजपा-शिवसेना गठबंधन महाराष्ट्र में तेजी के साथ उभरा। 1995 के विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया। इस चुनाव में शिवसेना को 73 और भाजपा को 65 सीटें मिलीं। इस बार शिवसेना ने मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने और भाजपा के खाते से गोपीनाथ मुंडे उप मुख्यमंत्री और गृह मंत्री बने। इस दौरान दोनों पार्टियों में छोटे-मोटे मतभेद उभरते रहे लेकिन पहली बार भाजपा और शिवसेना के बीच सत्ता का संघर्ष 1999 के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला। इस चुनाव में मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा मजबूत करने के लिए दोनों दलों ने एक-दूसरे के उम्मीदवारों को हराने की कोशिश की। इसस चुनाव में शिवसेना को 69 सीटें और भाजपा को 56 सीटें मिलीं। सरकार बनाने के लिए दोनों दलों के बीच करीब 23 दिनों तक वार्ता चली लेकिन दोनों में बात नहीं बन सकी। शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई और कांग्रेस से विलासराव देशमुख राज्य के मुख्यमंत्री बने। विपक्ष में रहते हुए भाजपा और शिवसेना कई मुद्दों पर एकमत नहीं रहे। प्रमोद महाजन महाराष्ट्र में भाजपा की 'सौ प्रतिशत' सरकार बनाने पर जोर दिया जबकि बाल ठाकरे ने तंज कसा कि राज्य में शिवसेना के बल पर भाजपा का कमल खिल रहा है। 

2004 का विस चुनाव साथ लड़ा
आपस में गतिरोध होने के बावजूद दोनों पार्टियों ने 2004 का विधानसभा चुनाव साथ लड़ा। इस चुनाव में शिवसेना को 62 सीटें और भाजपा को 54 सीटें मिलीं। शिवसेना -भाजपा सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे दर्जन भर विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए लेकिन इस बार भाजपा को नेता विपक्ष का पद भी नहीं मिला।  साल 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन एक बार फिर सत्ता में लौटा। इस चुनाव में भाजपा के सीटों की संख्या में कमी आई लेकिन गत 20 वर्षों में पहली बार भाजपा शिवसेना से दो सीट ज्यादा जीतने में सफल हुई। इस बार भाजपा विधानसभा में नेता विपक्ष का पद पाने में कामयाब हुई।

2014 में पहली बार अलग-अलग चुनाव लड़ा
2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के साथ सीटों की संख्या पर सख्त हुई। सीटों की संख्या पर बात नहीं बनने पर दोनों पार्टियों ने गत 25 वर्षों में पहली बार अलग-अलग चुनाव लड़ा। इस चुनाव में शिवसेना को 63 सीटों और भाजपा को 122 सीटों पर जीत मिली। सरकार बनाने के लिए भाजपा और शिवसेना के बीच काफी जद्दोजहद हुई। बाद में शिवसेना गठबंधन सरकार के लिए तैयार हुई और भाजपा से देवेंद्र फड़णवीस राज्य के मुख्यमंत्री बने। सरकार में शिवसेना को 12 मंत्री पद दिए गए लेकिन वह इन विभागों को लेकर हमेशा शिकायत करती रही।

केंद्र और राज्य दोनों जगह की सत्ता में सहयोगी रहने के बावजूद शिवसेना ने लगातार भाजपा की नीतियों की आलोचना की और उस पर तंज कसे। शिवसेना ने नोटबंदी, राफेल और महाराष्ट्र में किसानों की कर्जमाफी पर भाजपा पर निशाना साधा। इस दौरान दोनों पार्टियों के बीच तल्खी इतनी बढ़ गई कि दोनों दलों ने 2017 का बीएमसी चुनाव अलग-अलग लड़ा। 

भाजपा के लिए इस बार अच्छे नहीं रहे नतीजे
2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक आने पर दोनों पार्टियों ने अपनी कटुता भुलाकर साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने बेहतर प्रदर्शन किया  लेकिन 2019 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए अच्छे नतीजे वाले नहीं रहे। भाजपा इस चुनाव नमें 122 सीट से 105 पर आ गई जबकि उसकी सहयोगी शिवसेना को 56 सीटें मिलीं। 56 सीटें जीतकर शिवसेना 'किंगमेकर' की भूमिका में आ गई। जिस दिन चुनाव नतीजे आए उस दिन उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद और '50-50 फॉर्मूले' पर अपना दावा किया। उद्धव ने कहा कि दोनों पार्टियों के बीच लोकसभा चुनावों से पहले सत्ता के बंटवारे के लिए '50-50 फॉर्मूले' पर सहमति बनी थी।  

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर