कर्नाटक में काफी समय से चल रहे सियासी नाटक का अब पटाक्षेप होने जा रहा है। कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार चल रही है। कर्नाटक की यह सरकार भारतीय जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से बेदखल करके बनाई गई थी। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने बीएस येदियुरप्पा को बड़े बे-आबरू होकर कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।
राज्य की अकेली सबसे बड़ी पार्टी है भाजपा
कर्नाटक विधानसभा में कुल 225 सीटें हैं, जिनमें से 224 सीटों पर चुनाव करवाये जाते हैं और एक विधायक को मनोनीत किया जाता है, लकिन मनोनीत विधायक को सदन में वोट करने का अधिकार नहीं होता है। कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। भाजपा के पास कुल 105 विधायक थे। सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, तो बीएस येदियुरप्पा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। लेकिन बहुमत कहां से आएगा इसके बारे में नहीं सोचा। इसको लेकर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सुप्रीम कोर्ट ने बीएस येदियुरप्पा को एक दिन के अंदर ही बहुमत सिद्ध करने का समय तय कर दिया। ऐसे में येदियुरप्पा बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए और उनकी सरकार गिर गई।
सरकार की कमजोरी को भाजपा ने बनाई अपनी ताकत
सरकार गिरने के बाद से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिला और पिछले 14 महीने से सरकार चल रही है। लेकिन इस दौरान सरकार को कभी खुलकर काम करने नहीं दिया गया। कांग्रेस नेताओं की तरफ से हमेशा दबाव बनाया जाता रहा है, जिसके बारे में कुमारस्वामी तत्कालीन कांग्रेस अध्य़क्ष राहुल गांधी से भी बात कर चुके हैं। गठबंधन सरकार की इसी कमजोरी को भाजपा ने अपना हथियार बना लिया और सरकार में शामिल विधायकों को तोड़ने में लग गई। अंततः वह दिन आ गया जब कुमारस्वामी को सदन में बहुमत सिद्ध करने की नौबत आ पड़ी।
गठबंधन सरकार के पास नहीं पर्याप्त आंकड़े
जेडीएस और कांग्रेस के 13 विधायक पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया है। इसके अलावा सरकार को समर्थन देने वाले दो निर्दलीयों और एक बसपा के विधायक ने समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया है। इस तरह से सरकार के विधायकों की संख्या 16 घट गई है। इसके पहले सरकार के पास कांग्रेस के 80 और जेडीएस के 37 विधायकों के साथ तीन अन्य विधायकों का समर्थन था, जिससे सरकार के समर्थन वाले विधायकों की संख्या 120 थी। अब 224 में से 16 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है या वे सदन में मौजूद नहीं हैं, तो उनकी गिनती नहीं की जाएगी। सदन में मौजूद विधायकों की ही गिनती की जाएगी। इसमें से जिसके पास विधायकों की संख्या ज्यादा होगी, उसका बहुमत माना जाएगा। अब कुल विधायकों की संख्या 208 रह गई है, जिसमें बहुमत के लिए 105 विधायकों की जरूरत है, तो भाजपा के पास 105 विधायक पहले से ही हैं। इस तरह से अब कुमारस्वामी की सरकार का गिरना तय माना जा रहा है।
सरकार गिरते ही 'ऑपरेशन कमल' को माना जाएगा सफल
राज्य में भाजपा सरकार गिरने के बाद से ही पार्टी के नेता ऑपरेशन कमल पर लगे हुए थे। जिसके जरिए उन्होंने सत्ताधारी विधायकों को इस्तीफा देने के लिए राजी कर लिया। अब एक बार सरकार बन जाने के बाद उन विधायकों को पार्टी में शामिल कराकर उन्हे पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ा दिया जाएगा और वे फिर से जीत कर आ जाएंगे, जिससे राज्य में भाजपा सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।