लखनऊ : इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला पद पर रहते हुए पिछले करीब 30 वर्षों में अभियोग का सामना करने वाले किसी उच्च न्यायालय के पहले न्यायाधीश बन गए हैं। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने जस्टिस शुक्ला के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को अनुमति दे दी है। जस्टिस शुक्ला के खिलाफ यह मामला मेडिकल दाखिले में भ्रष्टाचार से जुड़ा है। जस्टिस शुक्ला पर आरोप है कि उन्होंने नियमों को ताक पर रखते हुए छात्रों के दाखिले के लिए निर्धारित अंतिम तिथि का विस्तार किया और एक निजी मेडिकल कॉलेज के पक्ष में फैसला सुनाया।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति जुलाई 1991 तक नहीं ती लेकिन शीर्ष न्यायालय ने अपने वीरास्वामी केस में न्यायाधीशों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की इजाजत दी। साल 1976 के भ्रष्टाचार के एक मामले में मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस वीरास्वामी के खिलाफ केस दर्ज हुआ था। जस्टिस वीरास्वामी ने अपने खिलाफ दर्ज मामले की चुनौती सुप्रीम कोर्ट में दी जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के अपने फैसले में कहा कि प्रधान न्यायाधीश से अनुमति मिलने के बाद शीर्ष न्यायालय एवं हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ केस दर्ज किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के 1991 के फैसले के बाद हाई कोर्ट के जस्टिस शुक्ला पर अभियोग दर्ज होने का यह पहला मामला है। सुप्रीम कोर्ट के आंतरिक पैनल की जांच में जस्टिस शुक्ला को कदाचार एवं निजी मेडिकल कॉलेज के पक्ष में जानबूझकर फैसला देने का दोषी पाया गया है। बता दें कि सीजेआई गोगोई ने जनवरी 2018 में न्यायाधीश शुक्ला से उनके न्यायिक कामकाज का अधिकार वापस लेने का आदेश दिया था। जबकि कुछ दिनों पहले जस्टिस शुक्ला ने सीजेआई से अपना न्यायिक कामकाज बहाल करने का अनुरोध किया था। प्रधान न्यायाधीश ने पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में जस्टिस शुक्ला को उनके पद से हटाने की अनुशंसा की थी।
सितंबर 2017 में उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने जस्टिस शुक्ला के खिलाफ कदाचार का आरोप लगाया था। इस आरोप के बाद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजाआई दीपक मिश्रा ने मामले की जांच के लिए मद्रास हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाई कोर्ट के सीजे एसके अग्निहोत्री और एमपी हाई कोर्ट के जस्टिस पीके जयसवाल को शामिल करते हुए एक आंतरिक पैनल का गठन किया था। इस पैनल ने जस्टिस शुक्ला पर लगे आरोपों को सही पाया है और उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है।
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