नई दिल्ली। अयोध्या टाइटल सूट मामले में 6 अगस्त से रोजाना सुनवाई शुरू हो चुकी है। बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के सामने निर्मोही अखाड़ा ने अपना पक्ष रखा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अखाड़े के वकील सुशील कुमार जैन से कुछ सवाल पूछे।
अदालत ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा कि क्या आपके पास दावेदारी साबित करने के लिए कोई मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य( राजस्व रिकॉर्ड या रामजन्म भूमि स्थल पर दावा साबित करने का) है। इस सवाल के जवाब में उनके वकील ने कहा कि 1982 में डकैती में उन्होंने सभी साक्ष्य खो दिए।
निर्मोही अखाड़ा के वकील के इस जवाब में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि वो लोग अगले दो घंटे में मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्यों को देखेंगे। जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ ने कहा कि आप लोग मूल दस्तावेजों को दिखाएं। इस सवाल के जवाब में वकील सुशील जैन ने जवाब दिया कि वो लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दे रहे हैं।
अदालत द्वारा साक्ष्य मांगे जाने के बाद निर्मोही अखाड़ा ने कुछ और समय की मांग की। इन सबके बीच श्रीराम लला विराजमान की तरफ से वकील ए के परासरन पक्ष रख रहे हैं। उसके बाद निर्मोही अखाड़ा फिर अपना पक्ष रखेगा। श्रीराम लला विराजमान के वकील ए के परासरन से जस्टिस बोबड़े ने वाल्मिकी रामायण के बारे में पूछा। अदालत के सामने उन्होंने कहा कि भारत में देवी और देवता को एक शख्स के आधार पर कानूनी मान्यता प्राप्त है और वो अपना मुकदमा लड़ सकते हैं। लेकिन इस तरह के मामलों को ट्रस्टियों के जरिए अंजाम तक पहुंचाया जाता है।
ए के परासरन ने कहा कि रामजन्मभूमि स्थान पर देवता का मानवीकरण किया गया है और इस तरह से वो जगह खुद ब खुद हिंदू समाज के लिए आस्था का केंद्र बन चुका है। उन्होंने कहा हिंदू समाज की मान्यता और विश्वास है कि श्रीराम की आत्मा वहां विराजती है। श्रद्धालुओं का अडिग विश्वास यह साबित करता है कि वो जगह श्रीराम की जन्मभूमि है।
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