नाइजीरिया पर सख्त हुए ट्रंप (AP)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब नाइजीरिया में सैन्य कार्रवाई की धमकी दी है। ट्रंप ने रविवार को ट्रुथ सोशल पर पोस्ट किया था कि अगर नाइजीरियाई सरकार ईसाइयों की हत्या की इजाजत देती रही, तो अमेरिका नाइजीरिया को दी जाने वाली सभी मदद तुरंत बंद कर देगा। साथ ही कहा कि अपने युद्ध विभाग को संभावित कार्रवाई के लिए तैयार रहने का निर्देश दे रहे हैं, और अगर अमेरिका हमला करता है, तो यह तेज, क्रूर और कठोर होगा। वहीं, अमेरिकी युद्ध मंत्री पीट हेगसेथ ने एक्स पर जवाब दिया, या तो नाइजीरियाई सरकार ईसाइयों की रक्षा करे, या हम उन इस्लामी आतंकवादियों को मार गिराएंगे जो ये भयानक अत्याचार कर रहे हैं। अमेरिकी नेताओं के बयानों ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान नाइजीरिया की ओर खींचा है। नाइजीरिया में वर्षों से आतंकवादी हमले आम रहे हैं। हालांकि इन हमलों में बड़ी संख्या में ईसाई मारे गए हैं। नाइजीरिया में संघर्ष किस बात को लेकर है, और ट्रंप अचानक वहां सैन्य कार्रवाई की बात क्यों कर रहे हैं? विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।
रविवार को ट्रुथ सोशल पोस्ट से कुछ दिन पहले ट्रंप ने घोषणा की थी कि अमेरिका नाइजीरिया को 'विशेष चिंता का देश' घोषित कर रहा है। यह दर्जा उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में भी इस अफ्रीकी देश को दिया था, लेकिन जो बाइडन ने इसे हटा दिया था। अमेरिकी विदेश विभाग के अनुसार, 1998 के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (IRFA) के तहत, राष्ट्रपति को दुनिया के हर देश में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति की वार्षिक समीक्षा करनी होती है और जिस देश में धार्मिक स्वतंत्रता के विशेष रूप से गंभीर उल्लंघन पाया जाता है, उसे विशेष चिंता का देश (CPC) घोषित करना होता है।
यह दर्जा किसी देश पर प्रतिबंध लगाने और उसे दी जाने वाली अमेरिकी सहायता में कटौती करने का रास्ता खोल सकता है। 29 दिसंबर, 2023 तक, इस प्रकार नामित कुछ और देश म्यांमार, चीन, क्यूबा, इरिट्रिया, ईरान, उत्तर कोरिया, निकारागुआ, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान हैं। नाइजीरिया को अमेरिकी सहायता खासी बड़ी है। सितंबर में अमेरिका ने देश में भुखमरी से निपटने के लिए 32.5 मिलियन डॉलर की सहायता को मंजूरी दी थी। अगस्त 2024 में नाइजीरिया में अमेरिकी मिशन ने कहा कि देश को उप-सहारा अफ्रीका के लिए अमेरिकी सरकार की ओर से 536 मिलियन डॉलर के बड़े मानवीय सहायता पैकेज के हिस्से के रूप में 27 मिलियन डॉलर मिलेंगे।
इस देश में बोको हराम और इस्लामिक स्टेट वेस्ट अफ्रीका (ISWA) नाइजीरियाई और उन सभी लोगों से लड़ रहे हैं जिन्हें वे सही किस्म का मुसलमान नहीं मानते। इनमें ईसाई तो शामिल हैं ही, साथ ही बाकी मुसलमान, खासकर शिया भी शामिल हैं। ये आतंकवादी समूह मुख्य रूप से उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया में हैं, जहां मुसलमान ज्यादा संख्या में हैं, जबकि ईसाई दक्षिणी नाइजीरिया में अधिक संख्या में हैं।
मध्य नाइजीरिया में चरवाहे और किसान समुदाय चारागाह और पानी जैसे संसाधनों पर पहुंच को लेकर आपस में भिड़ जाते हैं। चरवाहे आम तौर पर मुसलमान होते हैं और किसान ईसाई। अमेरिका स्थित सशस्त्र टकराव वाली जगहें और घटना डेटा कार्यक्रम द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े दर्शाते हैं कि जनवरी 2020 और इस सितंबर के बीच नाइजीरिया में नागरिकों पर हुए 11,862 हमलों में 20,409 मौतें हुईं। इनमें से 385 हमले ईसाइयों के खिलाफ थीं जहां पीड़ित की ईसाई पहचान एक प्रमुख वजह थी। इन हमलों में 317 मौतें हुईं। ACLED के आंकड़े बताते हैं कि इसी अवधि में 196 हमलों में मुसलमानों के बीच 417 मौतें दर्ज की गईं।
बोको हराम की स्थापना 2002 में हुई थी। यह नाइजीरिया में एक इस्लामी खिलाफत स्थापित करना चाहता है और देश को कथित "भ्रष्ट" पश्चिमी प्रभाव से मुक्त करना चाहता है। यह पश्चिमी शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों पर हमला करने के लिए कुख्यात है। बोको हराम ने 2014 में बोर्नो राज्य के चिबोक से 276 स्कूली छात्राओं का अपहरण करके दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी थीं, जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर "हमारी लड़कियों को वापस लाओ" अभियान शुरू हुआ। 11 साल बाद भी उनमें से 50 से ज्यादा लड़कियों का पता नहीं चल पाया है। 'बोको हराम' नाम का मोटे तौर पर अनुवाद 'पश्चिमी शिक्षा' या 'पश्चिमी मूल्य' लेना 'हराम' (कुछ ऐसा जिससे परहेज किया जाए) है।
कई विश्लेषक नाइजीरिया में हुई हिंसा में एक आर्थिक पहलू और उपनिवेशवाद के दुष्परिणाम भी देखते हैं। नाइजीरिया को 1960 में अंग्रेजों से आजादी मिली थी। औपनिवेशिक शासकों ने अपने पीछे गहरी सांप्रदायिक दरारों, असमानता और ऊपर से नीचे तक लागू की जाने वाली शिक्षा प्रणाली की विरासत छोड़ी, जहां उत्तरी नाइजीरिया वंचित था। नाइजीरिया में असमानता अभी भी बहुत ज्यादा है। नाइजीरिया अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, और सबसे अहम बात यह है कि यह महाद्वीप का सबसे बड़ा तेल उत्पादक है। यहां अफ्रीका की सबसे बड़ी डांगोटे पेट्रोलियम रिफाइनरी स्थित है।
हालांकि यह कहना मुश्किल है ट्रंप ने आम तौर पर दूसरों के युद्धों में अमेरिका की भागीदारी का विरोध किया है और खुद को शांतिदूत के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है। अगर अमेरिकी सेना नाइजीरिया में लक्षित हमले करती है, तो उसे एक बड़े क्षेत्र में छोटे-छोटे ठिकानों पर निशाना साधना होगा। अमेरिका के लिए मुश्किय ये है कि उसने पिछले साल नाइजीरिया के पड़ोसी देश नाइजर में अपना अड्डा हटा लिया था। इस अड्डे का इस्तेमाल अमेरिका अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में इस्लामी आतंकवाद पर नज़र रखने के लिए करता था, लेकिन 2024 में नाइजर में सत्ता परिवर्तन के बाद इसे खाली करना पड़ा, क्योंकि नाइजर में अमेरिकी मौजूदगी मंजूर नहीं थी।
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