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अमेरिका को पासनी...तुर्की को कराची...पाकिस्तान का खतरनाक 'खेल' भारत के लिए कितनी बड़ी चुनौती?

चीन के ग्वादर से बमुश्किल 100 किलोमीटर दूर पासनी में अरबों डॉलर के गहरे पानी वाले बंदरगाह तक अमेरिका को पहुंच देने से लेकर, तुर्की को कराची में एक नए औद्योगिक केंद्र के लिए 1000 एकड़ जमीन देने तक, इस्लामाबाद अपनी विदेश नीति में एक नाटकीय बदलाव का संकेत दे रहा है। इसका भारत पर क्या असर होगा, कितनी बढ़ेंगी चुनौतियां, जानते हैं।

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पाकिस्तान बना रही नई रणनीति, अमेरिका-तुर्की को लुभाया

चीन को पूरी तरह साधने के बाद अब पाकिस्तान अमेरिका को अपने पाले में लाने के मिशन में जुट गया है। न सिर्फ अमेरिका बल्कि आसिम मुनीर की अगुवाई में पाकिस्तान तुर्की के साथ अपने संबंधों को और मजबूत बना रहा है। इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए पाकिस्तान ने दोनों देशों को नई पेशकश की हैं जिसे ठुकरा पाना इनके लिए आसान नहीं होगा। पाकिस्तान का नया खेल अगर सिरे चढ़ा तो भारत के लिए कई तरह की चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। मौजूदा हालात में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ के नाम पर भारत के लिए लगातार मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। नोबेल पीस प्राइज की आकांक्षा पूरी नहीं होने की टीस उनके चेहरे पर साफ नजर आ रही है और वह पिछले कई वर्षों में भारत से बने संबंधों को भी ताक पर रख रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान से ट्रंप की करीबी और अरब सागर में उसका नया खेल किस तरह भारत के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है, विस्तार से जानते हैं।

पाकिस्तान बदल रहा गठबंधन का नक्शा

पाकिस्तान चुपचाप अपने गठबंधनों का नक्शा बदल रहा है, और इस बार उसकी नजर बीजिंग से भी कहीं आगे है। चीन के ग्वादर से बमुश्किल 100 किलोमीटर दूर पासनी में अरबों डॉलर के गहरे पानी वाले बंदरगाह तक अमेरिका को पहुंच देने से लेकर, तुर्की को कराची में एक नए औद्योगिक केंद्र के लिए 1000 एकड़ जमीन देने तक, इस्लामाबाद अपनी विदेश नीति में एक नाटकीय बदलाव का संकेत दे रहा है। उसका लक्ष्य है- आर्थिक अस्तित्व, राजनीतिक वैधता, और बदलते जियोपॉलिटिक्स समीकरणों के बीच इस क्षेत्र में नए सिरे से प्रभाव जमाना।

पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट (AP)

पाकिस्तान ने ट्रंप के सामने फेंका पासा

रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान ने अमेरिका को पासनी में एक नागरिक बंदरगाह बनाने की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा है, जिसकी कीमत 1.2 अरब डॉलर से ज्यादा है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर के सलाहकारों ने कथित तौर पर सितंबर 2025 में मुनीर, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई बैठक के बाद यह विचार वाशिंगटन के सामने रखा। इस प्रस्ताव को पाकिस्तान की विशाल खनिज संपदा तक पहुंच के वादों से और भी आकर्षक बनाया गया, जिसमें रक्षा और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए महत्वपूर्ण दुर्लभ मृदा खनिज भी शामिल हैं।

आधिकारिक तौर पर इस बंदरगाह पर कोई अमेरिकी सैन्य बेस नहीं होगा। फिर भी रणनीतिक रूप से पासनी इतना अहम है कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह ईरान के चाबहार बंदरगाह और चीन के ग्वादर बंदरगाह के बीच स्थित है, जो संभवतः अमेरिका को अरब सागर में दो प्रतिद्वंद्वी ताकतों के बीच एक अच्छी स्थिति में रखेगा।

ड्रोन तक भी पहुंच देगा पाकिस्तान

इसके साथ ही पाकिस्तान ने कथित तौर पर वाशिंगटन को ड्रोन सुविधाओं तक सीमित पहुंच की पेशकश की है। यह 2000 के दशक की शुरुआत की याद दिलाता है, जब अमेरिकी ड्रोन अफगानिस्तान में मिशनों के लिए शम्सी एयरबेस से संचालित होते थे। ओसामा बिन लादेन पर हमले के बाद जनाक्रोश के बीच 2011 में ये ऑपरेशन बंद हो गए थे। फिर भी आतंकवाद के फिर से उभरने और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के संकट के बीच इस्लामाबाद इस तरह के सहयोग में दोबारा जान फूंकने की कोशिश में है। वह निवेश और कूटनीतिक समर्थन के लिए व्यापार करने की उम्मीद कर रहा है। अमेरिका के लिए शानदार पेशकश है। पासनी में मौजूदगी से अफगानिस्तान और ईरान पर निगरानी की जा सकेगी। 2021 में इस क्षेत्र से हटने के बाद से उसे यहां निगरानी करने में मुश्किलें आ रही हैं।

शहबाज ने तुर्की को भी लुभाया

लेकिन पाकिस्तान के इस नए खेल में वाशिंगटन अकेला साझेदार नहीं है। अप्रैल 2025 में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन को कराची औद्योगिक पार्क में एक निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (EPZ) स्थापित करने के लिए 1,000 एकड़ मुफ्त जमीन देने की पेशकश की थी। यह क्षेत्र कर छूट और मध्य एशिया और खाड़ी देशों के लिए सीधे शिपिंग रूट प्रदान करेगा, जिससे परिवहन लागत में लगभग 75 प्रतिशत की कमी आएगी। यह कदम सिर्फ आर्थिक नहीं था। तुर्की ने उस साल की शुरुआत में भारत के साथ टकराव, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था। विश्लेषकों द्वारा कराची ईपीजेड को एक कूटनीतिक पुरस्कार और अंकारा के साथ लंबे औद्योगिक और सैन्य सहयोग को गहरा करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

चीन को साधे रखना बड़ी चुनौती

पाकिस्तान की बहु-आयामी कूटनीति अब तीन धुरियों तक फैल गई है। प्रस्तावित पासनी बंदरगाह और ड्रोन सहयोग के जरिए पाकिस्तान, अमेरिका के साथ सुरक्षा और खुफिया जानकारी साझा करने की फिराक में है। वहीं, कराची निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र के जरिए तुर्की के साथ विनिर्माण और व्यापार को आगे बढ़ाना चाहता है। वहीं, ग्वादर और बेल्ट एंड रोड पहल के माध्यम से चीन के साथ बुनियादी ढांचा और मजबूत संपर्क को बनाए रखने का लक्ष्य है। लेकिन इन प्रतिस्पर्धी साझेदारियों को संभालना उसके लिए आसान काम नहीं होगा। चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा निवेशक बना हुआ है, जिसने ग्वादर और बिजली परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश किया है। बीजिंग ग्वादर के पास अमेरिका के किसी भी पैर जमाने को अपनी समुद्री पहुंच के लिए एक सीधी चुनौती के रूप में देखेगा। अगर पासनी समझौता आगे बढ़ता है, तो चीन इस क्षेत्र में अपनी सैन्य और रसद उपस्थिति का विस्तार करके जवाब दे सकता है, जिससे पहले से ही भीड़भाड़ वाले अरब सागर में तनाव और बढ़ जाएगा।

एक नाजुक और खतरनाक खेल

भले ही पाकिस्तान का यह नया कदम साहस भरा लगता है, लेकिन यह हताशा से उपजा है। यह बेहद नाजुक और खतरनाक भी है। आईएमएफ द्वारा उसके हर वित्तीय कदम की जांच और बढ़ती घरेलू अस्थिरता के साथ, इस्लामाबाद अपने भूगोल का मुद्रीकरण कर रहा है। वह नकदी और अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए पहुंच का इस्तेमाल कर रहा है। फिर भी उसके कदम में विरोधाभास स्पष्ट हैं। वह ग्वादर में चीनी वित्तीय मदद पर निर्भर रहते हुए पासनी में अमेरिकी निवेश की मेजबानी नहीं कर सकता। साथ ही, खाड़ी देशों से तटस्थता की उम्मीद करते हुए तुर्की के साथ सैन्य संबंधों को गहरा नहीं कर सकता। साफ तौर पर पाकिस्तान दोधारी तलवार पर है।

भारत के लिए इसका क्या मतलब?

भारत के लिए, इसके मायने तत्काल और बहुआयामी हैं। भारत के चाबहार टर्मिनल से मात्र 300 किलोमीटर दूर स्थित पासनी बंदरगाह पश्चिमी तट पर सामरिक संतुलन को बदलने का खतरा पैदा हो सकता है। अगर अमेरिका को यहां परिचालन संबंधी बढ़त मिल जाती है, तो यहां निगरानी का एक नया त्रिकोण बनेगा - चाबहार (भारत-ईरान), ग्वादर (चीन-पाकिस्तान) और पासनी (अमेरिका-पाकिस्तान)। इससे साफ तौर पर भारत बीच में फंस जाएगा। संभावित अमेरिकी-पाकिस्तान ड्रोन सहयोग भी भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताओं को भी बढ़ाएगा। भारत की पश्चिमी सीमा के पास निगरानी क्षमता बढ़ने से इस्लामाबाद को खुफिया जानकारी साझा करने के नए फायदे मिल सकते हैं। साथ ही, कराची में तुर्की की बढ़ती आर्थिक भूमिका उस साझेदारी को और मजबूत कर सकती है जो अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, खासकर कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ रही है।

भारत के लिए होगा इम्तिहान

भारत के लिए पाकिस्तान की ये नई रणनीति एक नई चुनौती लेकर आएगी। दरअसल, अरब सागर अब एक निष्क्रिय पड़ी तटरेखा नहीं रही; यह परस्पर विरोधी शक्तियों की एक बिसात है। भारत को अब अपने पश्चिमी तट पर समुद्री निगरानी को मजबूत करना होगा, ईरान और खाड़ी के साथ साझेदारी को सुदृढ़ करना होगा, और स्वदेशी रक्षा और खुफिया नेटवर्क में निवेश जारी रखना होगा। वहीं, पाकिस्तान की यह चाल उसे थोड़े समय के लिए राहत तो दे सकती है, लेकिन भू-राजनीति के दीर्घकालिक खेल में भूगोल नहीं, बल्कि दूरदर्शिता ही तय करती है कि बाजी किसके हाथ में रहती है।

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अमित कुमार मंडल
अमित कुमार मंडल Author

पत्रकारिता के सफर की शुरुआत 2005 में नोएडा स्थित अमर उजाला अखबार से हुई जहां मैं खबरों की दुनिया से रूबरू हुआ। यहां मिले अनुभव और जानकारियों ने खबरों ... और देखें

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