सौरव गांगुली ने कहा, भारतीय क्रिकेट इतिहास में हमेशा मिलेगी एमएस धोनी के विश्व विजयी छक्के को जगह  

MS Dhonis last-ball six in 2011 World Cup final: बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने साल 2011 के विश्व कप के फाइनल में धोनी के छक्के को यादगार बताते हुए बड़ा बयान दिया है।

MS Dhoni
MS Dhoni 
मुख्य बातें
  • बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने एमएस धोनी के 2011 विश्व कप के फाइनल के छक्के की जमकर तारीफ की है
  • गांगुली ने कहा है कि बेहद शानदार था धोनी के बल्ले से निकला वो छक्का
  • बतौर कप्तान मेरी विरासत को आगे लेकर गए थे धोनी

मुंबई: मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में साल 2011 में खेले गए विश्व कप का फाइनल भारतीय फैन्स के लिए कई मायनों में यादगार है। टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने नाटकीय अंदाज में अपने बल्लेबाजी क्रम में बदलाव करते हुए 91 रन धमाकेदार पारी खेलकर जीत दिलाई थी। धोनी ने जैसे ही विजयी छक्का जड़ा वैसे ही कॉमेंट्री कर रहे रवि शास्त्री की आवाज, 'धोनी फिनिशेस ऑफ इन स्टाइल' प्रशंसकों के कानों में गूंज गई। 

ये ऐसा लम्हा था जिसे क्रिकेट प्रेमी कभी नहीं भूल पाएंगे। 28 साल बाद दूसरी बार टीम इंडिया के विश्व चैंपियन बनते ही क्रिकेट प्रेमी देशभर में सड़कों पर उतर गए और रात भर जश्न मनाते रहे। क्या आम क्या खास हर कोई जश्न में डूबा हुआ था। ऐसे में बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली ने टीम के विश्व चैंपियन बनने की याद को साझा किया है। 

विश्व विजय की याद को साझा करते हुए गांगुली ने कहा, मेरे लिए सबसे बड़ा दिन तब था जब भारतीय टीम 2011 में विश्व चैंपियन बनी थी। महान महेंद्र सिंह धोनी के आखिरी बॉल पर जड़े छक्के को भारतीय क्रिकेट इतिहास में हमेशा जगह मिलेगी। बेहद शानदार पल था वो। उन्होंने आगे कहा, मुझे याद है कि मैं उस रात वानखेड़े स्टेडियम में था और मैं धोनी और उनकी टीम को मैदान का चक्कर लगाते देखने के लिए कॉमेंट्री बॉक्स से बाहर आया था। 

गांगुली ने आगे कहा, साल 2003 में मेरी कप्तानी में भारतीय टीम को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फाइनल में हार का सामना करना पड़ा था। इसलिए मैं धोनी और उनकी टीम को ट्रॉफी उठाने के मिले मौके को देखकर खुश था। उस टीम में सात से आठ खिलाड़ी ऐसे थे जिन्होंने मेरे नेतृत्व में अपने करियर की शुरुआत की थी। वीरेंद्र सहवाग, खुद धोनी, युवराज सिंह, जहीर खान, हरभजन सिंह और आशीष नेहरा उन खिलाड़ियों में शामिल थे। ऐसे में मैंने सोचा कि जो विरासत मैंने बतौर कप्तान छोड़ी थी उसे वो आगे लेकर गए थे। मैं टीम के लिए जो विरासत छोड़कर गया था उसके अंदर घरेलू और विदेशी सरजमी पर जीतने की क्षमता थी। 


 


 

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