बिहार के गौरवशाली इतिहास की अनकही कहानी (फोटो - टाइम्स नाउ नवभारत)
Story of Bihar: भारत में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं। देश का हर राज्य पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। हर राज्य और उसमें बसने वाले शहरों का एक अलग इतिहास, संस्कृति और किस्से-कहानियां हैं। राजनीतिक दृष्टि से अभी बिहार चर्चा का केंद्र बना हुआ है। विधानसभा चुनाव के कारण सभी की निगाहें बिहार पर टिकी हुई हैं। चुनाव में क्या होगा, लोग किस पार्टी को वोट करेंगे, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में किस के सिर जीत का ताज सजेगा, यह तो रिजल्ट के बाद ही पता लगेगा। लेकिन इस बीच आप अपने राज्य बिहार के बारे में कितना जानते हैं, यह सबसे महत्वपूर्ण सवाल है। आइए आज आपको बिहार से जुड़े विभिन्न सवालों के जवाब दें। आपको बताएं कि बिहार का वर्तमान नाम कैसे पड़ा था? बिहार का पुराना नाम क्या था? बिहार का इतिहास क्या है? क्यों इसे ज्ञान और गौरव की भूमि कहा जाता है? आज इस स्टोरी में हम आपको बिहार से संबंधित सभी महत्वपूर्ण सवालों का जवाब देने का प्रयास करेंगे।
बिहार अपने गौरवशाली इतिहास के कारण गौरव और ज्ञान की भूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि क्यों बिहार को गौरव की भूमि (Land of Glory) और ज्ञान की भूमि (Land of Knowledge) कहा जाता है। सम्राटों और साम्राज्यों का उद्गम क्षेत्र बिहार मौर्य साम्राज्य का केंद्र था, जिसने भारत की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह वही स्थान है जहां बौद्ध धर्म और जैन धर्म का जन्म हुआ।
गौरव की भूमि बिहार
गणितज्ञ आर्यभट्ट, अर्थशास्त्री चाणक्य, धर्म संस्थापक गौतम बुद्ध और भगवान महावीर जैसी महान हस्तियों का जन्म बिहार की भूमि पर हुआ था। इतना ही नहीं देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म भी बिहार में ही हुआ था। यही कारण है कि बिहार को गौरव की भूमि के नाम से जाना जाता है।
ज्ञान की भूमि बिहार
अब बात आती है ज्ञान की भूमि की तो बता दें कि प्राचीन काल में विश्व का सबसे प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय बिहार में ही स्थित था। देश-विदेश से छात्र नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने आते थे। नालंदा विश्वविद्यालय को 12वीं शताब्दी के अंत में (लगभग 1193 ईस्वी) तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया था। इस आक्रमण में विश्वविद्यालय की विशाल लाइब्रेरी को जला दिया गया और भिक्षुओं की हत्या कर दी गई थी। ज्ञान के केंद्र को खत्म करने का पूरा प्रयास किया गया। लेकिन कहते हैं न कि 'आत्मा अमर होती है, शरीर नहीं'। उसी प्रकार आक्रमणकारियों ने नालंदा विश्वविद्यालय को तो नष्ट किया, लेकिन ज्ञान नष्ट नहीं कर पाए।
इसके अलावा बिहार जैन और बौद्ध धर्म की जन्मस्थली है। यहां प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट्ट ने 'आर्यभटीय ' ग्रंथ लिखा और गणित व खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए। अर्थशास्त्र और राजनीतिक सिद्धांतों के जनक माने जाने वाले चाणक्य ने अपने ग्रंथ 'अर्थशास्त्र' की रचना की थी। इस प्रकार बिहार ज्ञान की भूमि बन गई।
बिहार का पुराना नाम मगध था। यह प्राचीन काल में देश के 16 महाजनपदों में प्रमुख और सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था, जहां अशोक, अजातशत्रु और बिम्बिसार जैसे सम्राटों ने शासन किया था। प्राचीन मगध ब्रिटिश शासन के दौरान बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना। ब्रिटिश काल के दौरान जब राज्य की स्थापना की गई तब उसे उसका वर्तमान नाम बिहार मिला।
बिहार को प्राचीन काल में मगध के नाम से जाना जाता था। लेकिन इस बीच विहार कहां से आया और प्रदेश को उसका वर्तमान नाम बिहार कैसे मिला? यह सब महत्वपूर्ण सवाल हैं, जिनके बारे में हम सोचते तो हैं, लेकिन इसका उत्तर जानते नहीं हैं। इसलिए आज आपको मगध से विहार और फिर बिहार तक के सफर की कहानी बताएंगे।
मौर्य वंश के शासनकाल में उनका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ था। मगध और पाटलिपुत्र सत्ता का केंद्र थे। लेकिन अशोक के शासनकाल में विहार शब्द का जिक्र सबसे अधिक मिला। विहार शब्द का अर्थ मठ है। अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उन्हें बौद्ध भिक्षु कहा जाता था। इसी वजह से उनके रुकने के स्थान को और प्रार्थना के स्थान को विहार कहा गया। उस दौरान बिहार के कई हिस्सों में विहार बनाए गए।
धीरे-धीरे मगध साम्राज्य का पतन होने लगा और तुर्कों ने यहां आक्रमण कर दिया। अशोक के शासनकाल के दौरान बनाए गए विहार का उच्चारण करने में तुर्कों को मुश्किल होती थी और वह इसे 'विहार' की जगह 'बिहार' कहने लगे और इस प्रकार मगध पहले विहार बना और फिर बना बिहार।
बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग करके बिहार की स्थापना 22 मार्च 1912 में की गई थी। 1936 में ओडिशा को बिहार से अलग करके एक अलग राज्य बनाया गया। बता दें कि जब 1912 में बिहार की स्थापना की गई, उसी दौरान प्रदेश का आधिकारिक तौर पर 'बिहार' नाम रखा गया।
बिहार के इतिहास के पन्ने पलटे तो बक्सर की लड़ाई के बाद 1765 ई. में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच इलाहाबाद संधि हुई। इस संधि के आधार पर बादशाह शाह आलम ने बिहार, बंगाल और ओडिशा की दीवानी ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपी, जिससे यह क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गए और कंपनी को इनसे राजस्व वसूलने का अधिकार मिला। इन तीनों क्षेत्रों को मिलाकर बंगाल प्रेसीडेंसी के नाम से एक प्रशासनिक प्रांत का गठन किया था। फिर 1912 में बंगाल और ओडिशा को बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग कर एक अलग राज्य के तौर पर स्थापित किया गया।
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