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बिहारियों की खाली जेब, बढ़ती बेरोजगारी और मुफ्त चुनावी लॉलीपॉप! क्या बिहार झेल पाएगा नेताओं के बड़े वादे?

बिहार में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। रोजगार के लिए युवा पलायन करने को मजबूर हैं। सरकारी आंकड़ों और विभिन्न शोधों के अनुसार, राज्य में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। युवाओं के पास शिक्षा है, लेकिन रोजगार नहीं। इसके परिणामस्वरूप, कई युवा दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं।

बिहार चुनाव

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बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। वोटरों को लुभाने के लिए तमाम राजनीतिक पार्टियां एक से बढ़कर एक लुभावने वादे कर रही है। आज से एक महीने बाद, यानी 14 नवंबर को वोटो की गिनती होगी और बिहारियों को पता चल जाएगा कि अगले 5 सालों तक उनकी किस्मत कौन तय करेगा। चुनाव ऐलान के साथ मुफ्त चुनावी रेवड़ियां की चर्चा जोरों पर है। तेजस्वी यादव ने ऐलान किया है कि उनकी सरकार बनी तो 20 दिन के भीतर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी की गारंटी दी जाएगी। वहीं, दूसरी ओर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) भी पीछे नहीं है। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत, 25 लाख महिलाओं को छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए 10,000 रुपये दिए गए हैं। 5 लाख तक बेरोजगार को दो साल तक प्रति माह 1,000 रुपये का बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान किया गया है। आने वाले दिनों में कांग्रेस, लोजपा (R), सीपीआई समेत तमाम छोटे और बड़े राजनीतिक दल मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का ऐलान करेंगे। वह भी तब जब पलायन, बेरोजगारी, खराब शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था से यह राज्य जूझ रहा है! चुनावी वादों की झड़ी और राज्य की आर्थिक खस्ताहाली पर आइए एक नजर डालते हैं।

बेरोजगारी और खाली जेब: बिहार की वास्तविकता

बिहार में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। रोजगार के लिए युवा पलायन करने को मजबूर हैं। सरकारी आंकड़ों और विभिन्न शोधों के अनुसार, राज्य में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। युवाओं के पास शिक्षा है, लेकिन रोजगार नहीं। इसके परिणामस्वरूप, कई युवा दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। अधिकांश बिहारियों की आर्थिक स्थिति कमजोर है। छोटे किसान, मजदूर और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि चुनावी वादे जैसे मुफ्त गैस सिलेंडर, मुफ्त बिजली, और अन्य लाभकारी योजनाएं लोगों के लिए आकर्षक तो लगती हैं, लेकिन यह केवल अल्पकालिक राहत प्रदान करती हैं और लंबी अवधि में आर्थिक सुधार में मदद नहीं करती।

नौकरियां चाहिए लेकिन कोई रोडमैप नहीं

हर दूसरे भारतीय राज्य की तरह, बिहार में नौकरियां पैदा करने की जरूरत है। 3.16 करोड़ बिहारियों ने नौकरियों की तलाश में सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण कराया है, जो उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है। और अगर राज्य के भीतर नौकरियां नहीं मिलती हैं, तो वे कहीं और रोजगार की तलाश करते रहेंगे। काम की तलाश में इस निरंतर पलायन से राज्य की स्थिति कमजोर हुई है। जबतक राज्य से पलायन नहीं रुकेगा तबतक निवेश नहीं आएगा। चुनावी लॉलीपॉप की जगह नौकरियां बढ़ाने का रोडमैप राजनीतिक पार्टियों को पेश करना चाहिए।

वेतन, पेंशन और लोन के ब्याज पर भारी खर्च

2025-26 के लिए बिहार के बजट के अनुसार, राज्य को अपने कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और लोन के ब्याज पर 1.12 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की उम्मीद है। इन खर्चों को 'प्रतिबद्ध व्यय' कहा जाता है - इन्हें स्थगित नहीं किया जा सकता है। समस्या यह है कि ये प्रतिबद्ध खर्च सरकार के कुल व्यय का लगभग 40 प्रतिशत हैं। बेशक, कई राज्य ऐसे हैं जो वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर अपने कुल व्यय का 40 प्रतिशत से अधिक खर्च करते हैं। लेकिन बिहार के लिए यह ठीक नहीं है। बिहार के बजट को देखते हुए उसका मोटा पैसा वेतन, पेंशन और लोन के भुगतान में खर्च हो रहा है। इससे राज्य का विकास प्रभावित हो रहा है।

देश के बाकी हिस्सों से काफी पीछे बिहार

देश के बाकी हिस्सों को चलाने वाला क्षेत्र - सर्विस, बिहार में सिकुड़ गया है। सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बिहार के सेवा क्षेत्र द्वारा किया गया शुद्ध मूल्यवर्धन कुल शुद्ध राज्य मूल्यवर्धन के प्रतिशत के रूप में 2019-20 के 61.2 प्रतिशत से घटकर 2024-25 में 54.8 प्रतिशत रह गया है। द्वितीयक क्षेत्र (विनिर्माण, निर्माण और उपयोगिताएँ) का हिस्सा 19.2 प्रतिशत से बढ़कर 26.6 प्रतिशत हो गया है, जबकि प्राथमिक क्षेत्र (कृषि और खनन) मोटे तौर पर 19-20 प्रतिशत के आसपास स्थिर बना हुआ है।

यहां तक कि कारखानों की संख्या के मामले में भी, नवीनतम वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण के अनुसार, 2023-24 में बिहार में केवल 3,386 कारखाने थे। यह देश के सभी कारखानों का सिर्फ 1.3 प्रतिशत था। और भारतीय उद्योग द्वारा नियोजित श्रमिकों की कुल संख्या में से, बिहार में केवल 1.17 लाख, या 0.75 प्रतिशत थे। भारत के तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के लिए ये आंकड़े चिंताजनक हैं।

बिहार चुनाव
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ऐसा नहीं की विकास नहीं हुआ

इसमें कोई शक नहीं कि बिहार में प्रगति नहीं हुई है। पिछले दशक में गरीबी को कम करने में बिहार का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा है। हाल के वर्षों में बिहार की विकास दर भारत की तुलना में अधिक रही है। पिछले तीन वर्षों में, बिहार के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में वास्तविक रूप से औसतन 11.1 प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि हुई है, जो भारत की औसत वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत से लगभग डेढ़ गुना है। जबकि यह सराहनीय है, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि बिहार की तीव्र वृद्धि एक निम्न आधार पर है - 2024-25 में इसका जीएसडीपी 10 लाख करोड़ रुपये से कम था, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 5 प्रतिशत है।

बिहार का ग्रोथ, देश के लिए क्यों जरूरी?

देश के लिए बिहार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 25 वर्ष से कम आयु की सबसे युवा आबादी का घर है। बिहार की आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है, जो भारत की कुल आबादी का लगभग दसवां हिस्सा है। भारत की 331 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान लगभग 3.2 प्रतिशत या 10.97 लाख करोड़ रुपये (मौजूदा कीमतों पर) है। तो बिहार कितना गरीब है? शीर्ष राज्य, राष्ट्रीय औसत और बिहार के बीच का अंतर एक स्पष्ट तस्वीर पेश करता है। राज्य की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय शीर्ष पर मौजूद कर्नाटक से 3.80 लाख रुपये और भारत के राष्ट्रीय औसत 2.35 लाख रुपये के बीच का अंतर बहुत कुछ दर्शाता है। बिहार की प्रति व्यक्ति आय 66,828 रुपये है, जो कर्नाटक के छठे हिस्से से भी कम और राष्ट्रीय औसत के एक-चौथाई से भी कम है।बिहार राज्य जाति सर्वेक्षण के अनुसार, मात्र 15 प्रतिशत ने दसवीं कक्षा पूरी की है और केवल 6 प्रतिशत स्नातक हैं।

अगर भारत को विकसित राष्ट्र बनना तो बिहार को तेजी से विकास करना होगा। बिहार को अलग कर भारत एक विकसित देश नहीं बन सकता है। इसलिए भारत के ग्रोथ रफ्तार को तेज करने के लिए बिहार की जरूरत है। अब यह मुफ्ते के चुनावी वादों से होगा नहीं! इसके लिए एक विस्तृत रोडमैप की जरूरत है।

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आलोक कुमार
आलोक कुमार Author

आलोक कुमार टाइम्स नेटवर्क में एसोसिएट एडिटर के पद पर कार्यरत हैं। इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और प्रिंट मीडिया में उन्हें 17 वर्षों से अधिक का व्यापक अनुभव ह... और देखें

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