वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि उनकी नई टैक्स व्यवस्था का लक्ष्य, इनकम टैक्स को सरल (सिम्पल) बनाना है। मैं इस बात से सहमत हूं लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि इसके लिए आपको गणित की दृष्टि से यह समझने की कोशिश करनी होगी कि कौन-सी व्यवस्था आपके लिए बेहतर है।
पुरानी व्यवस्था जिसका टैक्स स्लैब अधिक है और जिस पर डिडक्शन मिलता है, या नई व्यवस्था जिसमें कम टैक्स लगता है और कोई डिडक्शन नहीं (अधिकांश डिडक्शन जैसे चैप्टर VIA के तहत मिलने वाले डिडक्शन हट गए हैं लेकिन कुछ रह भी गए हैं) मिलता है।
इस तरह, कम टैक्स देनदारी का आनंद उठाने के लिए अपने फाइनेंस पर ध्यान देना और ज्यादा जरूरी हो जाता है। लेकिन एक बात साफ है- नई व्यवस्था आपको इनकम टैक्स सेविंग्स के बारे में फिर से सोचने का मौका देता है, यदि यह जरूरी तौर पर सभी टैक्स पेयरों को ज्यादा टैक्स डिडक्शन बेनिफिट नहीं देता है तब भी।
इस तरह यह आपका ध्यान अधिक से अधिक डिस्पोजेबल इनकम, वेल्थ क्रिएट करने के लिए इन्वेस्टमेंट, और इंश्योरेंस के लिए मुख्य लक्ष्य के रूप में प्रोटेक्शन की तरफ आकर्षित करता है। आइए देखते हैं कि 2020-21 में इन दो तरह की टैक्स व्यवस्था के बीच के अंतर को समझना जरूरी क्यों है।
प्रस्तावित नई व्यवस्था के तहत, जिसमें टैक्स डिडक्शन का बेनिफिट नहीं मिलेगा, आपको टैक्स सेविंग प्रोडक्ट्स खरीदना नहीं पड़ेगा। लेकिन आपको टैक्स सेवर्स न होने के फायदे और नुकसान को समझना होगा। फायदे- आपको कम रिटर्न, ज्यादा चार्ज, और खराब लिक्विडिटी वाले टैक्स सेविंग प्रोडक्ट्स खरीदने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय आप ज्यादा रिटर्न, ज्यादा लिक्विडिटी, और कम चार्ज वाले मार्केट लिंक्ड इंस्ट्रूमेंट्स के माध्यम से वेल्थ क्रिएशन पर ध्यान दे सकते हैं।
नुकसान- कई भारतीय सिर्फ टैक्स बचाने के लिए इन्वेस्टमेंट और इंश्योरेंस करते हैं और इस नई व्यवस्था के तहत टैक्स बचाने की जरूरत न रहने के कारण अब वे अपना इन्वेस्टमेंट और इंश्योरेंस दोनों बंद कर सकते हैं। मौजूदा आर्थिक मंदी के माहौल में, कई भारतीयों ने अपनी सेविंग्स को खर्च करना शुरू कर दिया है। इसलिए, बिलकुल भी सेविंग न करना - चाहे वह टैक्स सेवर्स के माध्यम से हो या किसी अन्य माध्यम से - बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए, यदि आप नई व्यवस्था का चुनाव करते हैं तो अपने भविष्य के लिए निवेश करना बंद न करें।
नई टैक्स व्यवस्था आपको एक प्रोटेक्शन टूल के रूप में इंश्योरेंस पर ध्यान देने का मौका देती है। इसलिए, छूट सीमा (जैसे सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये) के छू जाने की चिंता किए बिना, आप अपने फाइनेंशियल डिपेंडेंट्स के लॉन्ग-टर्म प्रोटेक्शन के लिए टर्म इंश्योरेंस खरीदने पर ध्यान दे सकते हैं। आप हॉस्पिटलाइजेशन और क्रिटिकल इलनेस यानी गंभीर बीमारी से संबंधित खर्च से बचने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस खरीद सकते हैं। जबकि आप इनके लिए डिडक्शन के लिए क्लेम नहीं कर पाएंगे लेकिन फिर भी अपने परिवार की सुरक्षा के लिए इन्हें खरीदना जरूरी है।
नया नियम जरूरी तौर पर हर किसी के हित में नहीं है। श्रीमती सीतारमण के भाषण से उदाहरण का हवाला देते हुए, मान लीजिए आपकी इनकम 15 लाख रुपये थी। डिडक्शन के बिना, आप मौजूदा नियम के तहत 273,000 रुपये टैक्स देते हैं, और नए नियम के तहत 195,000 रुपये देते हैं।
लेकिन यदि आपने जरूरी डिडक्शन (जैसे होम लोन रीपेमेंट, बच्चों की ट्यूशन फीस, लाइन और हेल्थ इंश्योरेंस का प्रिमिय, एजुकेशन लोन इंटरेस्ट डिडक्शन, इत्यादि) का लाभ उठाया है, जो कुल मिलाकर 300,000 रुपये तक हो सकता है तो आपका टैक्स घटकर 179,400 रुपये हो जाता है। इसलिए, कुछ मामलों में हाई डिडक्शन से काफी फर्क पड़ता है, और एब्सोल्यूट टैक्स रेट्स अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग-अलग होते हैं। इसलिए, आपको वित्तीय गणित (फाइनेंशियल मैथ) को अच्छी तरह समझना होगा।
कुल मिलाकर, एक डिडक्शन-फ्री, सिंपल टैक्स स्लैब स्ट्रक्चर जरूरी तौर पर आपको ज्यादा टैक्स बचाने में मदद नहीं भी कर सकता है। यदि आप इन्वेस्टमेंट या इंश्योरेंस नहीं करते हैं तब भी आप एचआरए, बच्चों की ट्यूशन फीस, प्रोविडेंट फंड कॉन्ट्रिब्यूशन, और डिडक्शन के योग्य खर्च इत्यादि के माध्यम से डिडक्शन के योग्य हो सकते हैं। इसलिए, अपने फाइनेंस पर अच्छी तरह और गहरी नजर डालें और जरूरत पड़ने पर टैक्स सम्बन्धी सलाह के लिए व्यावसायिक सलाहकार की मदद लें।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।)
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