नई दिल्ली: बजट की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और 1 फरवरी को मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का दूसरा बजट पेश करेगी। इस बजट से लोगों को काफी उम्मीदें हैं। रियल एस्टेट सेक्टर बुस्टअप चाहता हैं, तो आम आदमी टैक्स में राहत की उम्मीद लगाए बैठा है। टैक्स एक ऐसा पहलू है, जो कई सेक्टर को छूता है। पिछले साल सितंबर में मोदी सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की थी, इंडिया इंक बजट में भी ऐसी ही किसी घोषणा की उम्मीद कर रहा है। आइए जानते हैं कि केंद्रीय बजट 2020-21 में मोदी सरकार किस प्रकार की राहत प्रदान कर सकती है।
इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव या पर्सनल इनकम टैक्स में राहत की मांग लंबे समय से उठ रही है। सराकर इस बजट में इस प्रकार का कोई कदम उठा सकती है। फिलहाल 2.5 लाख रुपये तक की आय पर कोई टैक्स नहीं लगता है, 2.5 लाख से 5 लाख रुपये तक की आय पर 5 फीसदी, 5 लाख से 10 लाख तक की आय पर 20 फीसदी और 10 लाख से ऊपर की आय पर 30 फीसदी टैक्स लगता है।
बैंक बाजार से सीईओ आदिल शेट्टी ने बताया, 'व्यक्तिगत आयकर दरों में कटौती वेतनभोगियों के सबसे लोकप्रिय मांगों में से एक है। सरकार मूल छूट सीमा को 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर सकती है। इसके अलावा, 30% स्लैब पर विचार करना चाहिए। यह 2012-13 से 10 लाख रुपये पर अटका है। बड़े शहरों के बढ़ते खर्चों से निपटने के लिए माध्यम वर्ग के लोगों को भी कर पे ज़्यादा छूट मिलनी चाहिए। इसलिए 30% स्लैब को बढ़ा कर 10 लाख के बजाय 20 लाख की आय पर लगाना चाहिए।'
कॉर्पोरेट टैक्स में सरकार ने पिछले साल सितंबर में कटौती की है। हालांकि इसे और कम करने की मांग की जा रही है। फिलहाट ये टैक्स 22 फीसदी है, जिसे 15 फीसदी करने की मांग है।
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स को हटाने की मांग
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स को इस बजट में हटाने की मांग की जा रही है। कारोबारी इक्विटी कैपिटल पर लगने वाली एलटीसीजी टैक्स में राहत चाहते हैं।
वहीं रियल एस्टेट सेक्टर की उम्मीदें इस बार के बजट से काफी ज्यादा हैं। EverVantage के सहसंस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर, सुधांशु केजरीवाल ने बताया, 'रियल्टी क्षेत्र में विकास को प्रोत्साहित करने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वित्त मंत्री के पास बहुत बड़ा काम है। व्यक्तिगत करदाताओं को छूट प्रदान करने के लिए सरकार की ओर से कई संकेत दिए गए हैं। हालांकि इससे एक औसत उपभोक्ता की डिस्पोजेबल आय में वृद्धि होगी, लेकिन यह अकेले पर्याप्त नहीं हो सकता है।'
उन्होंने बताया, 'उद्योग बाजार में मौजूदा तरलता की कमी के लिए एक समाधान देखना चाहेंगे। ऋण के पुनर्गठन के लिए संस्थानों की अनुमति देना एक अच्छा उपाय हो सकता है। इसके अलावा, रियल्टी क्षेत्र के लिए लंबे समय से अन्य क्षेत्रों के साथ बराबरी का व्यवहार करने की मांग की जा रही है, जिसमें जमीन की लागत को कुल वित्त लागत का एक हिस्सा बनाया जाना सही दिशा में एक कदम हो सकता है। रुकी हुई परियोजनाओं के ढेर को देखते हुए, INR 25000 करोड़ के स्ट्रेस्ड फंड से लेट स्टेज परियोजनाओं के लिए एक त्वरित वितरण डेवलपर्स और घर खरीदारों के बीच विश्वास पैदा करेगा।'